नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू करने में चुनौतियां और निष्कर्ष | सम्पूर्ण जानकारी पीडीएफ के साथ

एनईपी 2020 को लागू करने में चुनौतियां

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू करने में चुनौतियां और निष्कर्ष | सम्पूर्ण जानकारी पीडीएफ के साथ

वैसे तो एनईपी 2020 को तैयार करने में लाखों लोगों के सुझाव लिए गए हैं, इनमें शिक्षक, पालक से लेकर वैज्ञानिक तक शामिल हैं। इस नीति को खुद एक वैज्ञानिक की अध्यक्षता वाली समिति ने तैयार किया है। ऐसे में इस नीति में जो भी प्रावधान किए गए हैं उसे बच्चों की शारीरिक मानसिक और आज की परिवेश को ध्यान में रखा गया है। NEP 2020 बच्चों के भविष्य के लिए कारगर साबित होगा।

चूंकि यह शिक्षा का मसला है जोकि संविधान के अनुसूची 7 में निहित समवर्ती सूची का विषय है, जिस पर केंद्र व राज्य अपना-अपना नियम-नीति बना सकते हैं। इसलिए एनईपी 2020 को किसी राज्य के शिक्षण संस्थान में जबरदस्ती नहीं थोपा जा सकता। ऐसे में वह राज्य जहां केंद्र के सत्ता विपक्ष वाली सरकार है, एनईपी 2020 लागू करने में आनाकानी करेंगे। 

वैसे भी इस नीति में मौजूद त्रिभाषा व्यवस्था का दक्षिण भारतीय राज्यों में पहले से ही विरोध हो रहा है। इससे यही कहा जा सकता है कि दक्षिण भारतीय राज्य नई राष्ट्रीय नीति 2020 को शायद ही लागू करेंगे अथवा लागू भी करेंगे तो इसमें मौजूद त्रिभाषा पद्धति को नहीं अपनाएंगे।

अगर राज्य अपने यहां एनईपी 2020 को लागू करने से मना करेंगे तो इसका उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा। जैसे कॉमन एंट्रेस एग्जाम आयोजित नहीं कर पाएंगे, कॉलेज बीच में छोड़कर अन्य राज्य के कॉलेज में प्रवेश नहीं ले पाएंगे वगैरह। हालांकि जिन राज्यों में एनईपी 2020 लागू रहेंगे वहां यह व्यवस्था चलेगी।

मान लो उत्तर प्रदेश ने एनईपी 2020 लागू किया है और छत्तीसगढ़ ने नहीं किया तो ऐसे में उत्तर प्रदेश के छात्र बीच में कॉलेज छोड़कर 1 वर्षीय प्रमाण पत्र व 2 वर्षीय डिप्लोमा लेकर छत्तीसगढ़ के कॉलेज में उसी विषय से संबंधित कक्षा की पढ़ाई जारी रख नहीं पाएगा, उसे फिर से प्रथम वर्ष में भर्ती होना पड़ेगा लेकिन यदि दोनों राज्य एनईपी 2020 को फॉलो करेंगे तो ऐसी दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा।

अगर केंद्र चाहे तो शिक्षा को समवर्ती सूची से हटा कर संघ सूची में डाल सकता है फिर केंद्र जैसा पॉलिसी बनाए राज्यों को माननी पड़ेगी लेकिन इसकी संभावना शून्य है और केंद्र ऐसा कभी नहीं करेगा। ऐसा करने से शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाएगा।

निष्कर्ष

मोदी कैबिनेट द्वारा मंजूरी दी गई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 बच्चों में बहुआयामी प्रतिभा जागृत करेगी और उनको आत्मनिर्भर बनाने की दृष्टि से रोजगारपरक शिक्षा उपलब्ध कराएगी, जो कि बेहद सटीक और आवश्यक मुद्दा है। 10+2 प्रणाली को खत्म कर 5+3+3+4 प्रणाली लागू करके बच्चों में विश्लेषणात्मक व तार्किक शिक्षा से उनमें पठन-पाठन के प्रति गहरी रुचि विकसित होगी। 

उच्च शिक्षा में मल्टी एंट्री और एग्जिट व्यवस्था से युवाओं में उत्साह का माहौल रहेगा और उनके द्वारा 1 वर्ष या 2 वर्ष पढ़े गए कक्षा का उन्हें सर्टिफिकेट व डिप्लोमा मिलेगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय करना सही भी है क्योंकि "मानव संसाधन" शब्द अजीब-सा प्रतीत होता है मानो वह किसी प्रकार की वस्तु हो।

उच्च शिक्षण संस्थानों को नियंत्रित करने के लिए एकल नियामक के गठन से उच्च शिक्षण संस्थानों के क्रियान्वयन में आसानी होगी क्योंकि अलग-अलग नियामक के बदले एक ही नियामक के दिशा निर्देशों का पालन करेगा। चूंकि शिक्षा केंद्र व राज्यों का अपना अलग अलग विषय है, अब देखना यह होगा कि इसे सभी राज्य अपनाते हैं या नहीं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 बेशक बच्चों के भविष्य के लिए फायदेमंद है और उम्मीद है कि इसे जल्द से जल्द लागू कर दिया जाएगा।


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